विषय-सूची
- तानाजी मालुसरे कौन थे? (Who is Tanaji Malusare in Hindi)
- तानाजी मालुसरे का जन्म कब हुआ था? (Tanaji ka Janm Kab Hua Tha in Hindi)
- जीजाबाई की प्रतिज्ञा का किया सम्मान।
- सिंहगढ़ का युद्ध (War of Sinhagad Tanaji Malusare in Hindi)
- वीर तानाजी की याद में स्मारक।
- तानाजी और सिंह गढ़ किले से जुड़े तथ्य!!
- तानाजी मालुसरे की वीरता की कविता (Veer Savarkar Poem on Tanaji Malusare in Hindi)
- तानाजी मूवी रिव्यु (Taanaji Movie Review in Hindi)
- निष्कर्ष (Conclusion)
तानाजी मालुसरे कौन थे? (Who is Tanaji Malusare in Hindi)
मराठा शेर “वीर तानाजी मालुसरे का जीवन परिचय (Tanaji Malusare Biography in Hindi)” – मराठा सेना का शेर जिसने मराठा साम्राज्य के लिए कई युद्ध लड़े और मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
यह कहानी “तानाजी मालुसरे की कहानी” है। जिनकी मराठा सेना में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ स्वराज के निर्माण में अभूतपूर्व योगदान देते हुए मराठा सामाज्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
“तानाजी मालुसरे की जीवन परिचय” वह जीवन भर छत्रपति शिवाजी महाराज के अभिन्न मित्र व सहयोगी रहे है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने ही उन्हें ‘मराठा शेर’ की उपाधि प्रदान किये थे।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने केवल 14 वर्ष की आयु में स्वराज की स्थापना का संकल्प लिये थे। कुछ चुनिंदा मंदिरों में धर्म प्रेम की भावना को जागृत कर उन्हें अपने हक़ के लिए लड़ना सिखाया।
साथ ही उन्हें स्वराज की अवधारणा से अवगत कराया। ‘तानाजी मालुसरे के बारे में’ हिंदू स्वशासन की खातिर, मावलों ने अपनी जान की परवाह किए बिना खुद ही युद्ध में उतर गए। पांच मुस्लिम सल्तनतों के खिलाफ लड़ते हुए, उन्होंने प्रत्येक देश पर विजय प्राप्त की।
सह्याद्री पर्वत के शिखर पर वीर जीत ‘रायरेश्वरके स्वयंभू’ शिवालय में छत्रपति शिवाजी महाराज ने ’26 अप्रैल 1645′ को हिंदू स्वराज स्थापित करने की शपथ ली।
कान्होजी जेधे, बाजी पसालकर, तानाजी मालुसरे, सूर्यजी मालुसरे, येसाजी कंक, सूर्याजी काकडे, बापूजी मुद्गल देशपांडे, नरसप्रभू गुप्ते, सोनोपंत डबीर जैसे लोग भोर के पहाड़ों से परिचित थे।
“तानाजी मूवी स्टोरी इन हिंदी” शिवाजी महाराज ने इन सिंह-महा पराक्रमी चमत्कार के साथ रायरेश्वर स्वयंभू के सामने स्वराज का संकल्प लिये थे। इन महा पराक्रमी मावलों में से एक ‘तानाजी मालुसरे’ थे।
“तानाजी मालुसरे के बारे में जानकारी” तानाजी मालुसरे बहादुर और प्रसिद्ध मराठा योद्धाओं में से एक हैं। यह एक ऐसा नाम है, जो वीरता का पर्याय है। वह महान छत्रपति शिवाजी के मित्र थे। शिवाजी उनकी वीरता और शक्ति के कारण उन्हें ‘सिंह‘ कहते थे।
“तानाजी मालुसरे के बारे में बताओ” तानाजी मालुसरे को 1670 में सिंहगढ़ की लड़ाई के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है। जहां उन्होंने मुगल किले के रक्षक ‘उदयभान राठौर’ के खिलाफ अपनी आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी। जिसने मराठों के जीतने का मार्ग प्रशस्त किया था।
तानाजी मालुसरे का जन्म कब हुआ था? (Tanaji ka Janm Kab Hua Tha in Hindi)
पूरा नाम (Full Name) | तानाजी मालुसरे उर्फ़ सरदार कलौजी |
जन्म (Birth) | 1600 ई |
मृत्यु ( Death) | 1670ई |
जन्म स्थान (Birth Place) | गोन्दोली गॉव, सतारा जिला, महाराष्ट्र |
गृहनगर (Hometown) | सातारा |
माता का नाम | पार्वती बाई |
पिता का नाम | सरदार कोलाजी |
भाई का नाम | सरदार सूर्याजी |
पत्नी का नाम | सावित्री मालुसरे |
प्रेरणा स्त्रोत (Role Model) | छत्रपति शिवाजी महाराज |
तानाजी मालुसरे का जन्म 1600 ई में महाराष्ट्र सतारा के गोडोली में एक कोली परिवार में हुआ था। “तानाजी मालुसरे के माता पिता का नाम क्या था?” उनके पिता का नाम ‘सरदार कोलाजी‘ और माता का नाम ‘पार्वती बाई‘ था।
“तानाजी मालुसरे के भाई का नाम क्या था?” उनके भाई का नाम ‘सरदार सूर्याजी‘ था। इनकी माता पार्वती बाई का इन दोनों भाईयों के चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
इसके अलावा इनके मामा ‘कोंडाजी शेलार’ का भी इनके जीवन पर अच्छा प्रभाव पड़ा। माता पार्वती बाई व मामा कोंडाजी शेलार ने तय किया कि तानाजी व सूर्याजी मराठा सेना के सिपाही बनेंगे। अतः दोनों को ही युदध कला व शस्त्र चलाने की शिक्षा दी जानी चाहिए।
तानाजी मालुसरे छत्रपति शिवाजी महाराज के सबसे भरोसेमंद साथी थे। जिन्होंने उनके साथ स्वराज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी दोस्ती की वजह उनकी एक समान सोच थी।
दोनों अपनी मातृभूमि से प्यार करते थे। स्वतंत्र मराठा सामाज्य की स्थापना करना चाहते थे। दोनों ने मिलकर विभिन्न किलों को जीतने की योजना बनाई। धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती बढ़ने लगी।
शिवाजी महाराज अक्सर तानाजी के घर जाते थे। इससे उनकी मित्रता सूर्याजी से भी हो गई। यह पारिवारिक घनिष्ठता दोनों तरफ थी। शिवाजी महाराज की माता ‘जीजाबाई’ तानाजी से बहुत प्रभावित थीं।
छोटी सी आयु में ही तानाजी को तलवारबाजी का शौंक था। वो शिवाजी महाराज के अच्छे मित्र थे। उनके दिल में भी स्वराज की भावना उनके रक्त के हर कतरे में भरी थी।
उनके युद्ध कौशल और उनकी कर्तव्य निष्टा की वजह से उन्हें मराठा साम्राज्य में मुख्य सूबेदार के रूप में नियुक्त किया गया था।
वैसे तो उन्होने शिवाजी महराज के साथ बहुत सी लड़ाइयाँ लड़ी थी। लेकिन कोंडाणा किले की लड़ाई की वजह से उन्हें सबसे ज़्यादा याद किया जाता है।
जीजाबाई की प्रतिज्ञा का किया सम्मान।
उस समय, तानाजी को शिवाजी की तरफ से एक संदेश मिला कि माता जीजाबाई ने यह प्रतिज्ञा की है की जब तक वह कोंडाणा किले को मराठा साम्राज्य में शामिल नहीं कर लेती है। तब तक वह जूते नहीं पहनेंगी। उनकी यह प्रतिज्ञा तुरंत ही शिवाजी द्वारा तानाजी तक पहुंचाई गई। जैसे ही तानाजी को यह बात पता चला। वह अपने पुत्र के विवाह को बिच में ही छोड़ कर युद्ध के लिए लिकल पड़े।
सिंहगढ़ का युद्ध (War of Sinhagad Tanaji Malusare in Hindi)
“तानाजी मालुसरे का इतिहास (Tanaji Malusare History in Hindi)” तानाजी के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण युद्धों में से एक सिंहगढ़ (कोंडाणा) का युद्ध था। यह युद्ध 1670 में मराठा साम्राज्य और मुगलों के बीच युद्ध हुआ था। तानाजी अपने पुत्र की शादी में व्यस्त थे।
तभी अचानक विवाह के बिच में ही इनको खबर मिली की युद्ध शुरू हो गई है। तब वो उसी पल वो अपने ‘मामा शेलार’ के साथ युद्ध के लिए निकल जाते है। वहीं मराठा सम्राठ शिवाजी हर हालात में इस किले को एक बार पुनः हासिल करना चाहते थे।
युद्ध की शुरुआत से पहले शिवाजी महाराज तानाजी को को कहते है की कोंडाणा किले को मुगलो की कैद से मुक्त कराना अब उनकी इज्जत बन गया है।
यदि हम इस किले को हासिल नही कर पाएं तो आने वाली पीढ़ियां उन पर हंसेगी की हम हिंदू अपना घर भी मुगलो से मुक्त नही करा पाएं। जब यह बात तानाजी ने सुने तभी उन्होंने कसम खाई की अब उनके जीवन का उदेश्य केवल कोंडाणा किले को हासिल करना ही है।
कोंडाणा किले का डिज़ाइन ऐसा था कि उस पर हमला करने वाली सेना को सबसे ज्यादा विपरीत परिस्थियों का सामना करना पड़ता था। वही शिवाजी इस किले पर हर परिस्थिती में जित हासिल करना चाहते थे।
तब किले पर ‘लगभग 5000 हजार’ मुगल सैनिकों का पहरा था और सुरक्षा की जिम्मेदारी उदयभान राठौर के हाथों में था। उदयभान एक हिन्दू शासक हुआ करते थे। लेकिन सत्ता की लालच में आकर मुस्लिम धर्म को अपना लिया।
कोंडाणा किले में एक ऐसा भाग मौजूद था। जहां से मराठा सेना आसानी से किले में प्रवेश कर सकते थे। किले की यह भाग ऊंची पहाडीयों का पश्चिमी भाग में था।
तानाजी ने एक रणनीति बनाये उन्होंने यह तय किया कि वह किले की ऊंची पहांडीयों का पश्चिमी भाग से चट्टानों पर चढ़ेंगे और किले की सुरक्षा को भेदेंगे।
गोह एक प्रकार का जानवर होता है, जो छिपकिली (Lizard) का बड़ा रूप होता है। महाराज शिवाजी गोह जानवर को पलते थे।
जो गोह नामक चिपकली की तरह होती है। यह मुश्किल से मुश्किल चट्टान में मजबूती से चिपक जाती है। तानाजी के कोंडाणा किले में प्रवेश करने के बाद मराठा सेना एक के बाद एक किले में प्रवेश कर जाते है।
तानाजी की इस गोहपड़ का नाम यशंवंती था। तानाजी लगभग 342 सैनिकों के साथ किले में प्रवेश करते हैं। ताकि मुगलों से कोंडाणा किले को मुक्त करा सके।
लेकिन तभी किले में सुरक्षा के लिए तैनात मुगल सेनापती उदयभान को इस बात की भनक लग जाती है और मराठा सैनिकों के बीच भयंकर युद्ध होता है। तानाजी जब सैनिको का सामना कर रहें होते है।
तब अचानक उदयभान झल से उन पर हमला कर उनकी की हत्या कर देता है। मामा शेलार तानाजी की मौत का बदला उदयभान को जान से मार कर लेते है। एक बार फिर कोंडाणा किले पर मराठा साम्राज्य का अधिकार होता है।
कोंडाणा किले को जीतने के बाद मराठा सम्राट शिवाजी किले की जीत के बाद भी दुखी हो गए और बोले “गढ़ आला पण सिंह गेला” यानी गढ़ तो जीत लिया लेकिन मेरा सिंह तानाजी मुझे छोड़ कर चला गया”।
वीर तानाजी की याद में स्मारक।
शिवाजी महाराज ने कोंडाणा किले को मुगल शासन से मुक्त करने के बाद अपने दोस्त की याद में कोंडाणा किले का नाम बदलकर “सिंहगढ़” रख दिया। साथ ही पुणे नगर के “वाकडेवाडी” का नाम “नरबीर तानाजी वाडी” रख दिया।
तानाजी की बहादुरी और वीरता को देखकर, शिवाजी ने उनकी स्मृति में महाराष्ट्र में उनकी याद में महाराष्ट्र में उनकी याद में कई स्मारक स्थापित किए। भारत सरकार ने भी तानाजी का सम्मान करते हुए सिंहगढ़ किले की तस्वीर के साथ 150 रुपये की डाक टिकट भी जारी की।
तानाजी और सिंह गढ़ किले से जुड़े तथ्य!!
- तानाजी मालसुरे के बलिदान को ध्यान में रखते हुए, शिवाजी महाराज ने कोंडाणा किले का नाम “सिंहगढ़” रखा है।
- प्रचंड पराक्रम और अविश्वसनीय साहस के लिए सिंहगढ़ किले में तानाजी मालसुरे की मूर्ति स्थापित की गई है।
- यह ऐतिहासिक किला पुणे का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बन गया है।
- पुणे शहर के “वाकडेवाडी” का नाम बदलकर “नरबीर तानाजी वाडी” कर दिया गया। इसके अलावा, तानाजी के कई स्मारक पुणे में बनाए गए थे।
- सिंह गढ़ किला राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी, खडकवासला में एक प्रशिक्षण केंद्र के रूप में कार्य करता है।
- मध्ययुगीन काल के, तुलसीदास (मैं यहां गोस्वामी तुलसीदास की बात नहीं कर रही हूं) ‘शाहिर‘ कवि ने “पोवाडा” कविता की रचना की। जिसमें तानाजी मालसुरे की वीरता और बहादुरी को दर्शाया गया था।
- वीर सावरकर नें तानाजी के जीवन पर एक गीत लिखा जिसका नाम “बाजी प्रभु” था।
- ब्रिटिश सरकार नें इस रचना पर प्रतिबंध लगाया। फिर 24 मई, 1946 में उन्होंने यह प्रतिबंध हटा लिया था।
- तानाजी के जीवन पर एक पुस्तक लिखि गयी। इस पुस्तक को ‘गढ़ आला पण सिंह गेला‘ नाम दिया गया।
तानाजी मालुसरे की वीरता की कविता (Veer Savarkar Poem on Tanaji Malusare in Hindi)
‘वीर सावरकर द्वारा लिखा गया कविता।’
जयोऽस्तु ते श्रीमहन्मंगले शिवास्पदे शुभदे।
स्वतंत्रते भगवति त्वामहम् यशोयुतां वंदे॥१॥स्वतंत्रते भगवती या तुम्ही प्रथम सभेमाजीं।
आम्ही गातसों श्रीबाजीचा पोवाडा आजी॥२॥चितूरगडिंच्या बुरुजानो त्या जोहारासह या।
प्रतापसिंहा प्रथितविक्रमा या हो या समया॥३॥तानाजीच्या पराक्रमासह सिंहगडा येई।
निगा रखो महाराज रायगड की दौलत आयी॥४॥जरिपटका तोलीत धनाजी संताजी या या।
दिल्लीच्या तक्ताचीं छकलें उधळित भाऊ या॥५॥स्वतंत्रतेच्या रणांत मरुनी चिरंजीव झाले।
या ते तुम्ही राष्ट्रवीरवर या हो या सारे॥६॥
तानाजी मूवी रिव्यु (Taanaji Movie Review in Hindi)
“Taanaji Movie Review in Hindi” अजय देवगन, सैफ अली खान और काजोल स्टारर पीरियड ड्रामा फिल्म तानाजी: द अनसंग वॉरियर का मूवी रिलीज हो गया है। तानाजी मालुसरे की जिंदगी पर बेस्ड ये फिल्म अजय देवगन के करियर की 100वीं फिल्म है। मूवी का ट्रेलर दमदार है। सोशल मीडिया यूजर्स तानाजी के ट्रेलर की खूब तारीफ कर चुके हैं।
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- CAB क्या है? (What is Citizenship Amendment Bill in Hindi) – हिंदी में जानिए।
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- धूम्रपान छोड़ने के आसान तरीके (Easy Way to Stop Smoking in Hindi)
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निष्कर्ष (Conclusion)
तानाजी मालुसरे, सिंह नाम से भी जाने जाते है। 1670 में सिंहगढ़ की लड़ाई में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई थी। वैसे तो भारत के इतिहास में काफी लड़ाईयां हुई हैं जो कई योद्धाओं ने वीरता से लड़ी और जीती भी है। ऐसे में कई योद्धाओं ने अपनी जान भी गवाई हैं। इन्हीं योद्धाओं में से एक हैं “तानाजी मालुसरे”।
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