छठ पूजा क्यों मनाई जाती है? क्या है इसका महत्व।

छठ पूजा क्यों मनाई जाती है? (Chhath Pooja Kyu Manaya Jata Hai)

छठ पूजा क्यों मनाई जाती है?” छठ पूजा सूर्य और उनकी पत्नी उषा को समर्पित हैं। छठ पूजा का पर्व सूर्य देव की आराधना के लिए मनाया जाता हैं। यह पर्व साल में दो बार मानाया जाता है। चैत्र शुक्ल षष्ठी और कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथियों को मनाया जाता हैं।

इसमें कार्तिक की छठ पूजा का महत्त्व जयादा होता है। यह पर्व चार दिनों तक चलता हैं और इसे अनेको नाम से जाना जाता हैं जैसे – छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा, आदि।

छठ पूजा क्यों मनाई जाती है? (Chhath Puja Kyu Manaya Jata Hai)

छठ पर्वछठ या षष्‍ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व हैं। यह त्योहार सूर्य देव की उपासना का त्योहार हैं। सूर्य देव यानि भगवान भास्कर को अर्ध्य देकर उनकी पूजा की जाती हैं। मुख्य रूप से यह पर्व पूर्वी भारत के बिहारझारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस महापर्व छठ को इस्लाम सहित अन्य धर्मों में भी मनाते देखा जाता हैं।

छठ पूजा का इतिहास (Chhath Pooja Ka Itihas)

शास्त्रों के अनुसार देखा जाये तो छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्य देव की आराधना और उनकी कृपा पाने के लिए किया जाता हैं। ऐसा माना जाता हैं की सूर्य देव की पूजा से चर्म रोग और सेहत अच्छी रहती हैं। साथ ही धन-धान्य के भंडार भरे रहते हैं। ये व्रत रखने से सूर्य के समान तेजस्वी सन्तान की प्राप्ति होती हैं।

छठ पूजा कब से मनाया जाता है? (Chhath Pooja Kab Se Manaya Jata Hai)

  • इस त्योहार की शुरूआत महाभारत काल से हुई थी।
  • सूर्यपुत्र कर्ण प्रतिदिन घंटो नदी में खड़े होकर सूर्य को अर्ध्य देते थे।
  • जिसकी वजह से वह महान योद्धा बने।
  • उसी समय से छठ पूजा की परम्परा की शुरुआत हुई और आज भी छठ में अर्ध्य दान की परम्परा प्रचलित हैं।

द्रोपती ने भी रखा था छठ का व्रत

जब पांडव अपना सारा राजपाठ हर गए तब द्रोपती ने छठ का व्रत कर पांडवो को उनका सारा राजपाठ वापस दिलवाया। तब से छठ का व्रत हर कोई करने लगा।

छठ पूजा का महत्व (Chhath Pooja Ka Mahatva)

छठ की कथाओ में एक और कथा प्रचलित हैं। आदि काल में प्रियव्रत नाम का एक राजा था जिसकी कोई सन्तान नहीं थी। एक दिन वो राजा महर्षि कश्यप से मुलाकात की और सन्तान प्राप्ति के लिए उपाय पूछा। फिर उस राजा को कश्यप ऋषि ने पुत्रयेष्ठी यज्ञ करने की सलाह दी।

सफलता पूर्वक यज्ञ करने के बाद उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ लेकिन वह पैदा होते ही मर गया। कहा जाता हैं की जब राजा उस बच्चे को द्भ्नाने जा रहे थे। तभी आसमान से एक ज्योतिमर्य विमान धरती पर उतरा और उसमें बैठी देवी ने कहा, मैं षष्ठी देवी हु और पुरे संसार के समस्त बच्चो की रक्षिका हूँ। इतना बोल कर उस देवी ने मृत बच्चे की शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा। इसके बाद से राजा ने इस त्योहार की परम्परा को अपने राज्य में घोषित कर दिया।

चार दिन की होती हैं पूजा

पहला दिन नहाय खाय

  • छठ पूजा का त्योहार चतुर्थी को नहाय खाय के साथ इस त्योहार का प्रारम्भ हो जाता हैं।
  • इस दिन प्रात: काल स्नान करके नए वस्त्र पहना जाता हैं और सात्विक भोजन किया जाता हैं।
  • खाने में लौकी की सब्जी, चावल और चने की दाल को घी में बनाया जाता हैं।

दुसरा दिन खरना

  • ये कार्तिक शुक्ल पंचमी को होता हैं।
  • इसमें पुरे दिन निर्जला व्रत रख कर शाम के समय खीर और रोटी खाया जाता हैं।
  • इस खीर का सबसे जयादा महात्तम होता हैं और यह प्रसाद के रूप में बाकि लोगों को खिलाया जाता हैं।

तिसरे दिन छठ पूजा

  • इस दिन मुख्य छठ पूजा होती हैं।
  • जिसमें विशेष प्रसाद बना जाता हैं।
  • इसमें घी का ठेकुआ का खासा महत्त्व होता हैं।
  • चावल के लड्डू भी बनते हैं।  सरे फल को प्रसाद के रूप में उपयोग किया जाता हैं।
  • ये सब प्रसाद को एक बास की टोकरी में सजाया हटा हैं और नदी के घाट पर जा कर शाम के समय सूर्य भगवान को अर्ध्य दिया जाता हैं।

चौथा दिन पारण

  • छठ पूजा के चौथे और अंतिम दिन सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की विधि दोहरे जाती हैं।
  • इसके बाद विधिवत पूजा कर प्रसाद बता जाता हैं।

इन्हें भी देखें –

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